आस्तीन के धन…

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पौराणिक काल में, जब लोग अपने द्वारा लिए गए प्रण को तोड़ने से डरते थे, एक राज्याधिकारी ने सार्वजनिक प्रतिज्ञा ली की “अगर मैं, मुझे रिश्वत में दिए गए धन को छु भी लूं, तो मैं अग्नि द्वारा भस्म हो जाऊँ”. उनकी इस प्रतिज्ञा को लोगों ने काफी सराहा. राज्याधिकारी लोगों की प्रशंसा को सुन कर फुले नहीं समाते थे. वो इस प्रसिद्धि से काफी रोमांचित थे.

एक दिन एक व्यापारी उनसे एक ठेके के अनुबंध के सिलसिले में मिलने आता है. अनुबंध सम्पूर्ण करने के एवज में वो उनको बहुत सारे हीरे जवाहरात देने की पेशकश करता है. इतना धन देख कर, प्रलोभित होने के बावजूद, राज्याधिकारी अपने प्रण को उस व्यापारी के सामने दोहराते हैं. यह सुनकर व्यापारी उनसे कहता है – “श्रीमान, आप यह धन अपने आस्तीन में क्यों नहीं रख लेते, आपका प्रण भी रह जाएगा और आप इस धन से वंचित भी न रह जायेंगे”. व्यापारी की इस बुद्धिपूर्ण बात को सुन कर राज्याधिकारी काफी आनंदित हो उठे. तत्काल हीं उन्होंने व्यापारी को उस संपत्ति को उनके आस्तीन में रखने को कहा.

DISCLAIMER:- इस कहानी का किसी भी घटना से परस्पर सम्बन्ध सिर्फ एक संयोग मात्र है.